दिव्य पुष्प सा दिखा
दिव्य पुष्प सा दिखा,चाँद आसमान में।
है घटा घनी घिरी, आज उस मकान में।
छा गई निशा विकट,ठंड रात शीत की,
तारकें चली गयी, कौन सी दुकान में।
डोलती हवा चली,पात हाथ में लिए,
ये धरा खड़ी रही, मूक सी गुमान में।
दिख रहा धुआँ धुआँ,धुंध से भरा हुआ,
आज ज़िन्दगी लगी,फिर घिरी तुफान में।
स्वप्न नींद से जगा, कुछ अभी कहीं नहीं,
चाँद दिख रहा इधर, देखिये मचान में।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली