चाँद से मुलाकात
पहले चाँद आता था
छत पर हर रात
साथ लिए झिलमिल
तारों की बारात
होती थी कभी गंभीर
कभी छुटपुट सी बात।
कभी अचानक से यूं ही
दिखता था आँगन में
खेलता आँख-मिचौली सा
बेवजह की गुफ़्तगू संग
कभी किसी रात हो जाती
खिड़की पर मुलाकात।
फिर इमारतें निगल गयीं
छतों को वक्त के साथ
खिड़कियाँ सिमट सी गयीं
बंद दरवाजों में अपने
आँगन भी लुप्त से हो गये।
अब गुजरते चले जा रहे हैं
दिन, महीने और साल
नहीं कर पाते चाँद और मैं
गुफ़्तगू और मुलाकात।
कभी कहीं दिख जाए चाँद
चुरा लेती हूँ नजर एक
फीकी सी मुस्कुराहट के साथ।
रचनाकार :- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत)।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)।
दिनांक:- १४/१२/२०२३.