चाँद से बातचीत
चाँद से बातचीत
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सायं पीला चाँद,दिखा था नभ पर,
पुलकित विहस रहा वो मुझ पर ।
कहता मुझको दूर गगन से ,
ध्यान पड़ा है,क्यूँ इतने दिनों पर ।
अंधियारे और उजियारे में ,
हर पल तेरे संग-संग रहता ।
नजर तभी आता हूँ तुझको ,
आसमान में जब तारे होता ।
धरा के फेरे अहर्निश अनवरत करता,
दिवाकाल अनन्त नभ में ही होता ।
पर रवि किरणों से धुमिल मुखमंडल ,
दिन दुपहरी नभ दिख नहीं पाता।
याद करो बचपन की बातें ,
केसरिया था वो रुप सलोना ।
मामा बनकर तुझे खिलाता ,
दूध भात लिए कटोरी में खाना ।
भूल गया फिर,तू जो मुझको ,
खेल खिलौने में,बहलाता खुद को।
महबूबा को ही चांद था कहता ,
तरूण बना जब, देख प्रियतम को ।
मैं तो नित्य दिन रुप बदलता ,
फीका मद्धिम कुछ रंग संवरता ।
बिखेरकर अपनी शीतल चांदनी ,
रात गगन हर पल मुस्काता ।
कभी कभी बस,यूँ ही मुझसे ,
दीदार करो,निगाहे-ए-यार के जैसे।
फ़लक से उतरकर मैं ,जमीं पर आऊँ ,
ख्वाहिशों में तेरे, अमृतघट बन जाऊँ ।
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०५ /०५ /२०२३
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विक्रम संवत २०८०
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