खुदा ने ये कैसा खेल रचाया है ,
*प्रश्नोत्तर अज्ञानी की कलम*
विटप बाँटते छाँव है,सूर्य बटोही धूप।
ऐ मां वो गुज़रा जमाना याद आता है।
उजालों में अंधेरों में, तेरा बस साथ चाहता हूँ
दीपों की माला
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
ग़ज़ल/नज़्म - ये प्यार-व्यार का तो बस एक बहाना है
*धन्य अयोध्या हुई जन्म-भू, जिनकी गरिमा पाई【मुक्तक】*
2552.*पूर्णिका**कामयाबी का स्वाद चखो*
मेंरे प्रभु राम आये हैं, मेंरे श्री राम आये हैं।