चाँद से दिल लगा के
चाँद से दिल लगा के बैठा हूँ
चाँदनी में नहा के बैठा हूँ
उस सितमगर से आशना दिल है
चोट सारे भुला के बैठा हूँ
ओढ़ ली है रिदा सियासत की
दाग़े दामन छुपा के बैठा हूँ
अब्र से टूटकर गिरा हूँ मैं
‘अपनी हस्ती मिटा के बैठा हूँ’
आपके इंतज़ार में दिल को
इक घरौंदा बना के बैठा हूँ
फ़ासलों से ‘असीम’ क्या हासिल
दूर था, पास आ के बैठा हूँ
– शैलेन्द्र ‘असीम’