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10 Jan 2022 · 1 min read

चाँद से दिल लगा के

चाँद से दिल लगा के बैठा हूँ
चाँदनी में नहा के बैठा हूँ

उस सितमगर से आशना दिल है
चोट सारे भुला के बैठा हूँ

ओढ़ ली है रिदा सियासत की
दाग़े दामन छुपा के बैठा हूँ

अब्र से टूटकर गिरा हूँ मैं
‘अपनी हस्ती मिटा के बैठा हूँ’

आपके इंतज़ार में दिल को
इक घरौंदा बना के बैठा हूँ

फ़ासलों से ‘असीम’ क्या हासिल
दूर था, पास आ के बैठा हूँ

– शैलेन्द्र ‘असीम’

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