चाँद की चाँदनी हो तुम
———–चाँद की चाँदनी हो तुम ———
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रात को चमचमाते चाँद की चाँदनी हो तुम
गगन पर बादलों में गर्जती दामिनी हो तुम
फूलों सी खुशबू आती है मखमली बदन से
महकते गुलों के गुलशन की सुरभि हो तुम
मुखड़ा चाँद का टुकड़ा,ज़मीन पर है उतरा
कामदेव की बगल में बैठी कामिनी हो तुम
अस्त रवि की लाली सा नूर तेरे चेहरे का
महताब सी शांत ,शीतल शालिनी हो तुम
बहती सरिता की धारा सा स्वभाव है तेरा
सागर -लहरों सी जीवन में लहराती हो तुम
सुखविंद्र देखता तुझको दिन रात ख्वाबों में
लाल लहू रहे बहता वो रक्तवाहिनी हो तुम
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)