चाँदनी सी रातों मे चाँद सी चमकती है
घर सज संभकर वो जब कभी निकलती है।
होले होले लड़को के दिल ही दिल खटकती है।।
सर से जो गिरे पल्लू फिर तो वो दमकती है।
चाँदनी वो रातों मे चाँद सी चमकती है।।
वो उधर बिलखती है मैं इधर बिलखता हूँ।
दिलहीदिल मे वो अपने जीके घुटती मरती है।।
जब वो कभी सपनो मे मेरे पास आती है।
गोद मे वो सर रखके मीठी बातें करती है।।
मुझको वो सताती है फिर कभी हंसाती है ।
मुस्कुरा के धीरें से सारी बातें करती है।।
रूठकर के जब मुझसे वो कभी भी जाती है ।
हुस्न से करे कातिल, आग सी उगलती है।।
मे कभी मनाता हूँ, वो कभी मनाती है।
पास आके “कृष्णा” की बांहो लिपटती है।।
दिल के मेरे ख्वावो मे साथ साथ चलती है ।
जब कभी थकूँ हारूं हाथ वो पकडती है।।
✍कृष्णकान्त गुर्जर धनौरा 01/11/19-12:12
मो. 7805060303