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4 Jun 2023 · 1 min read

चाँदनी चूमती थी कभी जिनके पग

चाँदनी चूमती थी कभी जिनके पग,
तम में गहन अब कहीं खो गये हैं,
धरा के सितारे रहे जो कभी थे,
सितारों में अम्बर के चिर सो गये हैं।

छलकते पलक से निहारा अतीव,
पदचिन्ह लेकिन अगोचर हुए हैं,
ज्ञानदीपक सदृश ,जानता था जिन्हें,
जग -दृष्टि से वे पल ओझल हुए हैं।

कहानी धरणि पर वही दानवी सी,
मनुष्यों के दैवीय गुण सो गये हैं,
अज्ञान मानस गहन में भरा अति,
सुमन रूप में शूल जन हो गये हैं।

गूँजेंगे स्वर कब मानुष मनस में,
सत्कर्म निष्ठा क्या होगी जगत में,
यही भार उर मन अडिग सा अतीव,
मानव के अंतःदृग खुलेंगे सुमति में।

–मौलिक एवम स्वरचित–

अरुण कुमार कुलश्रेष्ठ
लखनऊ (उ.प्र.)

Language: Hindi
204 Views
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