चलो एक पत्थर हम भी उछालें..!
चलो एक पत्थर हम भी उछालें ..!
~~°~~°~~°
चलो एक पत्थर हम भी उछाले ,
हैवानियत की हद को दिल से लगा लें।
अगर बात कहनी है दिल की हमें भी ,
तो पत्थर से पत्थर की अग्नि जला लें।
चलो एक पत्थर हम भी उछालें…
दिखावे में जो बापू था,वो दिल में नहीं था ,
देखा था खिलाफत में,पहले भी दुनिया ।
बसा है जो नफरत के शोले दिलों में ,
उन शोलों को चुन-चुन कर,मजमा लगा लें।
चलो एक पत्थर हम भी उछालें….
ये गांधी की मूर्ति और उनकी समाधि
श्रद्धा सुमन अर्पित करने बना था।
पर पत्थर तो जुबां का आसान तरीका ,
इन पत्थर के फ़ूलों से दामन सजा लें।
चलो एक पत्थर हम भी उछालें…
ये पत्थर नहीं है,ये अरमान दिलों का ,
ये पत्थर नहीं है,इसमें बसती है ये दुनिया।
जो डरते हैं पत्थर से बढ़ते नहीं हैं ,
इस पाषाण हृदय को पत्थर से सजा लें ।
चलो एक पत्थर हम भी उछालें…
गुँजती है कानों में,बरसते पत्थरों की ध्वनियाँ ,
तिलमिलाता है लहू भी, बहती जब धमनियाँ ।
नस-नस से वाकिफ़ हैं सब,इन पत्थर के गुणों से ,
जो सोया है सदियों से, उसको जगा लें।
चलो एक पत्थर हम भी उछालें…
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ११/०६ /२०२२
ज्येष्ठ , शुक्ल पक्ष, एकादशी,शनिवार ।
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201
ई-मेल – mk65ktr@gmail.com