चलता रहा
चलता रहा कल तक, आज की खातिर ।
बजता रहा साज भी ,आवाज की खातिर ।
उतरती रहीं कुछ नज़्में, ख़्वाब जमीं पर ,
देतीं रहीं हसरतें हवा , नाज की ख़ातिर ।
….विवेक दुबे”निश्चल”@…
चलता रहा कल तक, आज की खातिर ।
बजता रहा साज भी ,आवाज की खातिर ।
उतरती रहीं कुछ नज़्में, ख़्वाब जमीं पर ,
देतीं रहीं हसरतें हवा , नाज की ख़ातिर ।
….विवेक दुबे”निश्चल”@…