“चलता पुर्जा आदमी”
सौ के बराबर एक आदमी
वह चलता पुर्जा आदमी।
न डॉक्टरी की डिग्री
न वकालत की कोई पढ़ाई
परवाह किसी की नहीं
लड़ते न्याय-सत्य की लड़ाई
गज़ब की दिखती सादगी
वह चलता पुर्जा आदमी।
अपने खर्चे से खिला देते
गाड़ी-घोड़े तलक बिठा देते
दुःख में भी औ’ सुख में भी
सबका साथ निभा देते
पता नहीं फरिश्ता है कि आदमी
वह चलता पुर्जा आदमी।
प्रकाशित काव्य-कृति :
‘तस्वीर बदल रही है’ से…
डॉ.किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति