चमचा चरित्र…..
ज्ञानी चमचे, अज्ञानी चमचे, चमचों से चमचा पुराण है।
इनके बिना बात नहीं बनती, यह बड़े ज्ञान की बात है॥
नवीन चमचे, मजबुर चमचे, अनभिज्ञ चमचे ढ़ेर है।
चमचों के चमचे बने बिना, न लगे आफिस में शेर है॥
बॉस के बेहतर परफार्मेंस में, एक भक्त चमचा जरूरी है।
जो लगाए अलग से तिकड़म, नहीं तो यह पद अधुरी है॥
बिना चमचों के बॉस को, पद का शान नहीं दिख पाता है।
बॉस भी पहले चमचा था, बगैर चमचों के न रह पाता है॥
बड़े बनो, या बैठो ऊँच सिंहासन, ओहदा की शान जरुरी है।
मन मुताबिक मिले न चमचा तो आफिस लाइफ अधूरी है॥
चाँदी के चम्मच से खाते, दिन रात जी हजुरी करते है।
अकड़ ऐसी होती है उनमें, जैसे खुद ही वे बॉस होते हैं॥
नर्क सा जीवन हो जाता, जब चमचा पीछे पड़ जाता है।
बॉस की नजरों में परफार्मेंस, बिल्कुल शुन्य हो जाता है॥
चाहे तुम करो दिन रात परिश्रम, फल नहीं मिल पाएगा।
बॉस के पास मंडरा कर चमचा, सारे अमृत चख जाएगा॥
चर्चा में यस सर, यस सर कह, वह बिन बात के मुस्काए।
बॉस की महिष बनिता को चमचा, उर्वशी व रम्भा बतलाए॥
बिना काम की फिक्र करे वह, फिकर की चरचा दिखलाए।
बॉस सदा ही राइट रहता, दफ्तर में सबको बतलाए॥
चमचागिरी संस्कार विशुद्ध, व्यवहारिक ज्ञान का दर्शन हैं।
इस दर्शन में पराक्रम से अधिक सबसे आवश्यक प्रदर्शन है॥
महत्वाकांक्षी चमचे, विमुख चमचे, भी काम कर जाते है।
स्वामी के लिए बन सुरक्षा कवच, सामने खड़े हो जाते है॥
मुख में राम, बगल में छुरी, चापलुसों को रखना जरुरी है।
बॉस की गाली सुन कर हँसना, यह चमचा की मजबुरी है॥
नवदीक्षित चमचे, अबोध चमचे बॉस की डाँट खा जाते है।
अनुभवी और पारंगत चमचे, सबसे बाजी मार ले जाते है॥
सीनियर के चमचों से डाह करे, अपना चमचा अनुपम है।
बॉस से लेकर मैडम का माने, उसके संस्कार सर्वोत्तम है॥
ईमानदार चमचे कुछ ऐसे, कमीशन बॉस को ही देते है।
संतुष्टी के परमानंद तक, संस्थान का स्वाहा कर देते है॥
हे कर्मवीरों, हे कर्णधारों, अनमोल वचन को याद करो।
संस्थान यह राष्ट्र समर्पित, सदैव इसका सम्मान करो॥
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