चटोरी जीभ!
यह जीभ स्वादों की मारी पड़ी है
चटोरी लुभाती ललचाती बड़ी है
इंसान को वशीभूत करने निकली
इच्छा शक्ति को हराती ही रही है
घूमती झूमती उलटती पलटती
सबको ही लाचार बनाती चली है!
कभी चाहे खारा कभी कहे खट्टा
कभी चाहे तीखा तो कभी मीठा
कभी उबलता तो कभी सुलगता
कभी चाहे बर्फीला सा पिघलता
कभी खाये सतरंगी कभी नारंगी
ईमान को सच डगमगाती बड़ी है
चटकारों के चक्करों में पड़ी यह
स्वादों में अटकी बदनाम बड़ी है!
जहां देखो हरदम रहे लारें टपकाती
बेचारे पेट को करती परेशान बड़ी है
मुँह को जलाती कभी पसीने छुड़ाती
मगर चेहरों पर लाती मुस्कान बड़ी है!