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2 Jan 2018 · 2 min read

चंद गज़लें

1

जब से अपनो ने दिल से जुदा कर दिया |
दर्द ने ज़िंदगी को फना कर दिया |

उलझनों से भरी ज़िंदगी हो गयी –
हर तरफ़ एक नया मसअला कर दिया |

फूल चुनते रहे हम हम तुम्हारे लिये –
खार से अपना दामन भरा कर दिया |

अब तो आजा गमे दिल सदा दे रहा –
अपनी सांसो को मैने रवां कर दिया |

दिल को चाहत तेरी तेरी ही आरज़ू –
ऐ सनम दिल ने तुझको खुदा
कर दिया |

आज बदली हुयी है जहां की फिज़ा –
हर नज़ारों ने भी रतजगा कर दिया |

जख्म रिसते रहे थी न कोई दवा –
तू ने छू कर जहर को दवा कर दिया |
मंजूषा श्रीवास्तव
******************************************

2

हरेक सांस सनम बेकरार गुज़री है |
अजीब रंग में अब के बहार गुजरी है |

तुम्हारे बिन ए सनम दिन लगे बरस जैसा –
न पूछो हाल मेरा खाकसार गुजरी है |

हसीन चम्पयी गुंचों की खो गयी खुशबू –
तेरे बिना युं खुशी तार तार गुजरी है |

तुम्हारे साथ जो पल हमनवा गुजारे हैं –
इन्ही पलों में मेरी जां करार गुजरी है |

तुम्हारे आने से हर जख्म भर गया दिल का-
खिले हैं फूल खुशी बेशुमार गुजरी है |

अपनी आगोश मे ले लो जकड़ लो बाहों में –
तमाम उम्र शब -ए – इंतज़ार गुजरी है |

भुलाए भूल न पाते है उन नज़ारों को-
जहाँ वफ़ा भी बन के धार दार गुजरी है |
मंजूषा श्रीवास्तव
******************************************

3

मेरा दिल कांच का टुकड़ा नहीं था |
जो तोड़ा तुमने वो शीशा नहीं था |

बहुत मारा मोहब्बत ने हुं ज़िंदा –
मैं टूटा तो मगर बिखरा नहीं था |

जिगर पर चोट कितनी बार खायी –
मगर आंसू कभी निकला नहीं था |

भटकते आ गये जाने कहां हम-
शहर में कोई भी अपना नहीं था |

जिसे पूजा जिसे चाहा सराहा –
मगर वो हमनवा मेरा नहीं था |

मोहब्बत के सफ़र में क्या मिलेगा –
कभी इस दिल ने ये सोंचा नहीं था |

तमन्नाओं के घेरे ने फसाया –
ये धोखा था कभी सच्चा नहीं था |

गिरे सौ बार खायीं ठोकरें भी-
मगर दिल इस तरह टूटा नहीं था |
मंजूषा श्रीवास्तव
******************************************

4
पहले नजरों से नज़रें चुराते रहे |
जब नज़र मिल गयी मुस्कुराते रहे |

प्यार की जुस्तज़ू का नशा जब बढा-
वो मुझे देख कर गीत गाते रहे|

हाथ थामा तो अरमान जगने लगे-
वो नज़र में नज़ारे बसाते रहे |

हम चरागे मोहब्बत जलाया किये –
वो मोहब्बत से दामन सजाते रहे |

जब किसी बात पे नम ये पलकें हुयीं-
प्यार के हाथ से गुदगुदाते रहे |

तिश्नगी जब बढी लड़खड़ाये कदम –
जाम नज़रों से अपनी पिलाते रहे |

हर नज़ारा जवां महकी महकी फिज़ा –
चाँद तारे जमी जगमगाते रहे |

ज़िंदगी बन गयी एक महकती सुबह-
ख्वाब पलकों पे मोती लुटाते रहे |
मंजूषा श्रीवास्तव

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