” चंद अश’आर ” – काज़ीकीक़लम से
🌺 चंद अश’आर 🌺
मिरी आशिक़ी ही मिरी पहचान है ।
तेरे दिल में बस्ती मिरी जान है ।।
समझ रहे थे जिसे गहरी चोट सब ।
वो तो तिरी चाहत का निशान है ।।
ग़मज़दा होकर तिरे दर से लौट आये हैं ।
हमारा हाल देखकर लोग भी हैरान है ।।
तिरे सामने रहते हैं सारा दिन हम तो ।
हमीं को छोड़कर सभी पे तिरा ध्यान है ।।
“काज़ी” तिरी बात पर यकीं कर लिया सबने ।
दिल को लगता है.. ग़लत तिरा बयान है ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , ” काज़ीकीक़लम ”
28/3/2 , इकबाल कालोनी , अहिल्या पल्टन
इंदौर , मध्यप्रदेश