चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी।
गीतिका छंद
2122 2122 2122 212
चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी।
छा गया सौन्दर्य अद्भुत है गजब की यामिनी।
दुग्ध उज्ज्वल मोतियों से युक्त शीतल चंद्रमा।
नभ सितारों से भरा मदहोश मदमाती समा।
क्षीर सागर में उछलती स्वच्छ जल की नीलिमा।
हार सुन्दर गुँथती प्रतिपल लजाती प्रियतमा।
दृश्य है अद्भुत विलक्षण पावनी मनभाविनी।
चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी।
संगमरमर सी चमकती ये रजत की रश्मियाँ।
सूर्य सा आभास देता चंद्रमा उस दरमियाँ।
है चकित चातक चकोरी चाह ली अँगराइयाँ।
प्रेम में खुद को मिटाया खो दिया परछाइयाँ।
भूमि से आकाश तक बिखरी हुई है रागिनी।
चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी।
दिव्य दुल्हन-सी सजीली खूबसूरत-सी धरा।
सोलहो शृंगार करके सृष्टि रूपी अप्सरा
सुख सुधा औषध समेटे व्योम से निर्झर झरा।
रत्न रंजित रश्मियाँ रसना रसायन से भरा।
पूर्णमासी रात भर पीती रही संजीविनी
चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी ।
रात रानी से सुगंधित गीत गाती हर दिशा।
अंक में शशि को समेटे मौन में डूबी निशा ।
रूप यौवन की छटा सुख स्वप्न रंजित ये कृशा।
कृष्ण रचते रास लीला प्रेममय मधुमय मिशा।
मग्न है कण-कण जगत का सृष्टि रूपी कामिनी।
चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी।
ओस की शुरुआत छन-छन -छन लुटाती मोतियाँ।
ओढ़ चादर कोहरे की चुप खड़ी हर वादियाँ।
खूब सूरत गीत गाती सरसराती पत्तियाँ।
क्षण सुखद सामीप्य का है मखमली सरगोशियाँ।
स्वर्ग का उल्लास लेकर हँस रही है दामिनी।
चंद्र शीतल आ गया बिखरी गगन में चाँदनी ।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली