चंचल चितवन
दोहा मुक्तक
चंचल चितवन ही सदा, हरते मन की पीर।
चंचलता से ही चलें, दो नैनन के तीर।
रहा हिलोरें मारता ,मन उमंग में प्यार।
प्रीति जता गृहिणी खड़ी,लिये हाथ में नीर।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,प्रेम
दोहा मुक्तक
चंचल चितवन ही सदा, हरते मन की पीर।
चंचलता से ही चलें, दो नैनन के तीर।
रहा हिलोरें मारता ,मन उमंग में प्यार।
प्रीति जता गृहिणी खड़ी,लिये हाथ में नीर।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,प्रेम