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12 Oct 2024 · 1 min read

घर के कोने में

घर के कोने में
मेरी अलमारी है
जिसमें रखी चीजें
मुझे बेहद प्यारी है

जोड़ा है एक एक
करके कितने सालों में
पहनूं या ना पहनूं
दिल करे इनको संभालूं मैं

कुछ महंगी हैं बड़ी
कुछ कम दाम की
मेरे लिए तो सभी है
अमूल्य, बेशकीमती

कुछ पुरानी कुर्तियां
अब पहन पाते नहीं
स्किनी जींस में
हम समाते नहीं

बेरंग सी हो गई
है कुछ साङियां
कुछ आउट ऑफ फैशन
इसलिये नहीं पहना

पहनूं या ना पहनूं
जुङाव तो रहेगा
कितनी यादें है समेटे
लगाव तो बनेगा

हां जगह लेती है बहुत
पर हक बनता है
आखिर यादों का क्या
दाम लग सकता है

आज भी जब
अकेलापन घेरता है
खोलती हूं अलमारी
इन पर हाथ फेरती हूं

चाहत और अपनेपन का
कितना लंबा साथ है
पुरानी, बेरंग या कुछ और
मेरे लिए तो है जीवन डोर

चित्रा बिष्ट

Language: Hindi
30 Views

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