घर के कोने में
घर के कोने में
मेरी अलमारी है
जिसमें रखी चीजें
मुझे बेहद प्यारी है
जोड़ा है एक एक
करके कितने सालों में
पहनूं या ना पहनूं
दिल करे इनको संभालूं मैं
कुछ महंगी हैं बड़ी
कुछ कम दाम की
मेरे लिए तो सभी है
अमूल्य, बेशकीमती
कुछ पुरानी कुर्तियां
अब पहन पाते नहीं
स्किनी जींस में
हम समाते नहीं
बेरंग सी हो गई
है कुछ साङियां
कुछ आउट ऑफ फैशन
इसलिये नहीं पहना
पहनूं या ना पहनूं
जुङाव तो रहेगा
कितनी यादें है समेटे
लगाव तो बनेगा
हां जगह लेती है बहुत
पर हक बनता है
आखिर यादों का क्या
दाम लग सकता है
आज भी जब
अकेलापन घेरता है
खोलती हूं अलमारी
इन पर हाथ फेरती हूं
चाहत और अपनेपन का
कितना लंबा साथ है
पुरानी, बेरंग या कुछ और
मेरे लिए तो है जीवन डोर
चित्रा बिष्ट