“घर की नीम बहुत याद आती है”
मेरे घर पर एक नीम है जो याद बहुत आती है,
हरी भरी नीम एक महक दे जाती थी।
पापा की एक खटिया बिछती थी,
गांव की सब सखियां ,बहने होती थी।
निबौरियों से हम सब खेला करती थी,
एक सुखद छाया ,मीठी शीतलता देती थी।
वो नीम हमे बहुत, और बहुत याद आती है,
वो सोंधी सी खुश्बू, बहुत भाती थी।
हवा में छोटे छोटे फूल,जब उड़ते थे,
मेरी माँ के बालों में उलझे रह जाते थे।
पापा मेरे आते थे, पत्तों,फूलों में उठाते थे ,
फिर नीम की छांव में ,सुख दुख समझाते थे।
खट्टी मीठी यादें लेकर,हम लौटे जब गांव से,
घर पर वह नीम नही ,रहीं ना अब वो छांव सी।
कहाँ गई चिड़ियों की चहचह ,कौओं की कांव कांव,
पापा की आवाज ,मम्मी के पायल की छन छनाती पांव।
आल्हा,कजरी सावन के गीत,
ना ढोल तमाशा के कोई गीत।
सन्नाटा पसरा मेरे गांव में,
घर के नीम के छांव में।
बिखर गए सब संबंध,पतझड़ सी बहार में,
ऐसा छाया काला जादू ,जहर घुल गया प्यार में।
हे नीम तू यद्दपि कड़वी भली,पर गुड़ तुम्हारे पास है,
पर अब प्राणियों में ना कोई मिठास है।
कड़वे फल फूलों में ,सर्वदा फूली फली,
अब रंच मात्र ना सुवास है,ना ही फूलती सुंदर कली।
हे नीम तू सर्वदा मेरे घर को शीतल छांव दो,
निज वायु शीतल सा ,परिवार में भाव दो।
बेखबर नीम आज भी,प्रतीक्षा कर रहा है,
जैसे वह नीम प्रतीक्षालय बना बन के खड़ा है।
प्रार्थना हरि से करूँ,हृदय में सदा यह आस रहे,
जब तक रहे नभ,चाँद तारे, सूर्य का प्रकाश रहे ।
मेरे घर की नीम बहुत याद आती है,
कभी कभी वो प्यारे पल ,अन्तर्मन को हिलाती है।।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज