घर आ चुके हैं
गए थे वो बाहर……मगर आ चुके हैं
परिंदे सभी उड़ के……घर आ चुके हैं
न आँखें दिखाओ हमें…..अब मियाँ यूँ
कि अब हम भी……अपने शहर आ चुके हैं
बने रहनुमा……फिर रहे थे जो कल तक
वो सब……अपनी औक़ात पर आ चुके हैं
इतनी भी जल्दी है क्या ……मिल के जाना
जरा देर तो तू ठहर……आ चुके हैं
मुखौटे छिपायेंगे……कब तक असलियत
सभी दोस्त-दुश्मन……नजर आ चुके हैं
मुमकिन नहीं……छोड़ दे हाथ अब हम
बहुत दूर तक……हमसफर आ चुके हैं
फिकर छोड़ दो……सारी दुनिया की ‘संजय’
कि हम भी ……फिकर छोड़कर आ चुके हैं