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5 Apr 2024 · 1 min read

घन की धमक

जेठ की उतरन में
रात के तीसरे पहर से
दूसरे दिन सूर्यास्त तक
चलती घन की धमक
तेज साँसों का हुँकारा
देवदूत की मानिन्द
चमकता श्यामू का चेहरा
सैकड़ों घोड़ों की ताकत से
घन उठ-उठ कर
रक्त-तप्त लोहे पर गिरता,
पसीने की बूँदें
पड़-पड़ कर लोहा पकता।

तब सम्भव ही न था
बिन श्यामू के कोई लोहा
और बिना लोहा के अन्न,
मगर अब हो चुका है
वो इतिहास में दफन।

प्रकाशित काव्य-कृति : ‘उड़ रहा गॉंव’ में
संकलित “घन की धमक”
शीर्षक रचना की चन्द पंक्तियाँ।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
टैलेंट आइकॉन 2022-23

Language: Hindi
3 Likes · 3 Comments · 163 Views
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