घनाक्षरी राम द्रोह/राम कृपा
राम द्रोह / राम कृपा
घनाक्षरी छंद
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धरती के गगन में, बेशुमार छिटके थे,
चमकने वाले नहीं, कोई सितारे बचे।
एक लाख पूत और सवा लाख नाती जाके ,
राम के विरोध में न, कोई भी प्यारे बचे ।
हाय हाय करें कैसे, हाय हाय करने को,
वंश अंश में न कोई, रोवनहारे बचे।
सत्रा लाख साल हुए,बजरंग बली एक,
कभी नहीं हारे सदा, राम सहारे बचे ।
राम विरोधी
घनाक्षरी छंद
हर पत्ता काटते थे,रँग चाहे जैसा भी हो,
अब सारे पत्ते कैसे,भद्दी वाले हो गये।
फिर गई मति ऐसी, गति दुर्गति बनी,
नेकी छोड़ काम सभी, बद्दी वाले हो गये।
प्रदूषणफैलाकर जनमन की गंगा में,
गंदगी से भरी हुई, नद्दी वाले हो गये।
राम के विरोध में रहे हैं जो भी गद्दीवाले,
नहीं बची गद्दी सभी, रद्दी वाले हो गये।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
2/2/23