***घड़ी***
“घड़ी”?
देखो, ये है एक घड़ी मतवाली;
समय की सदा करती रखवाली।
कभी रहती ये हाथों में बंधी पड़ी,
तो कभी, यों ही टेबल पर खड़ी।
कभी टंगी रहती, किसी दीवाल पर;
तो कभी दिखती सबके मोबाइल पर।
कभी टिक-टिक कर हमे टाइम बताती,
तो कभी शांति से सबको समय दिखाती।
हर घड़ी, हर समय; हर वक्त का सदा रखती हिसाब,
घड़ी को देख ही हम स्कूल जाते, और पढ़ते किताब।
……… ✍️प्रांजल
………….कटिहार।