गज़ल
क्या करूँ में दिल दुखातीआशिकी का
हल नही कोई मेरी लाचारगी का
घेर रख्खा है हमे इन अंधेरो ने
कोई तो हल तू बता दे तीरगी का
थी खबर हमको ले लेगी जान मेरी
था मेरा भी तो इरादा खुदखुशी का
पास रह कर भी रही दूरी सदा ही
पूछे ना वो हाल मेरी बेबसी का
साथ क्या ले जायेगा तू भी यहाँ से
कर ले कुछ इंतजाम तू भी बन्दगी का
मौत तो ले जायेगी इक दिन सभी को
क्या भरोसा है किसी की ज़िन्दगी का
हो गई हर आरजू दिल मे दफन अब
रास्ता कोई सुझा दे बेखुदी का
( लक्ष्मण दावानी ✍ )
17/8/2017