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24 Apr 2019 · 1 min read

गज़ल

कभी करीब इतना कि जैसे रूह का हिस्सा होते हो
और कभी सात आब-जू से भी परे होते हो

किस तरह से समझूँ तेरी ज़ात क्या है
कभी तुम आम तो कभी सोने से खरे होते हो

ये तेरा इश्क़ है या दिल्लगी का दिल है
कभी जलाते हो आग से और फिर ख़ुद ही नीर होते हो

खुदा के दर जाऊं या सजदा करूँ तेरा
कभी तुम उसके बन्दे तो कभी पीर होते हो

©मोनिका काकोडिया

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