#गौरवमयी_प्रसंग
#गौरवमयी_प्रसंग
■ साहित्य और राजनीति
★ नेहरू-दिनकर संवाद
【प्रणय प्रभात】
बात 75 साल पुरानी है। जो आज़ादी के अमृत-काल मे एक अमर संदेश भी मानी जा सकती है। देश के पहले स्वाधीनता दिवस पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ध्वजारोहण हेतु लाल किले की प्राचीर की ओर अग्रसर थे। साथ मे अन्य विशिष्ट राजनेताओं सहित राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह “दिनकर” भी थे।ध्वज मंच की सीढ़ियां चढ़ते हुए पं. नेहरू अचानक से लड़खड़ाए। इससे पहले कि वे गिरते, बलिष्ठ क़द-काठी के दिनकर जी ने उन्हें तत्काल संभाल लिया। नेहरू जी ने दिनकर जी को तुरंत धन्यवाद देते हुए कहा कि आज उनकी वजह से वे गिरने से बच गए। इस पर दिनकर जी ने तात्कालिक रूप से जो प्रत्युत्तर दिया वो कालजयी है। दिनकर जी ने क्षण भर सोचे बिना तपाक से कहा कि-
“इसमें धन्यवाद की कोई बात नहीं है पंडित जी! देश की राजनीति जब-जब भी लड़खड़ाएगी, साहित्य उसे इसी तरह संभालता रहेगा।”
धन्य हैं ऐसे महान पुरोधा और उनके अकाट्य विचार। जो कल भी सशक्त थे, आज भी प्रेरक हैं व कल भी प्रासंगिक रहेंगे। बशर्ते बेशर्म और सिद्धान्त-विमुख सियासत साहित्य के प्रति कृतज्ञता का आभास कर सके। स्मरण करना और कराना हमारा धर्म है और आपका कर्त्तव्य। ताकि समय आने पर हुंकार सकें कि-
“सिंहासन खाली करो, कि जनता आती है।”
अन्यथा भावी पीढियां हमें धिक्कारे बिना नहीं रहेंगी। जिसका संकेत राष्ट्रकवि श्री दिनकर बरसों पहले इन दो पंक्तियों में धरोहर के रूप में देकर गए हैं :-
“समर शेष है, नहीं युद्ध का भागी केवल व्याध।
जो तटस्थ हैं समय लिखेगा, उनका भी अपराध।।”
हमें गर्व है कि दमन और धूर्ततापूर्ण राजनीति के दौर में भी हम जैसे तमाम शब्द-साधक आने वाली नस्लों की नज़र में अपराधी साबित न होने की जंग पूरे साहस व मनोयोग से जारी रखे हुए हैं। आज हमारी बातें भले ही राजनीति के नक्कारखाने में तूती सिद्ध हो रही हो, कल ज़रूर क्रांति की अलख जगाने वाली साबित होगी।यह कालजयी प्रसंग साहित्य व राजनीति दोनों विषयों के शोधार्थियों, विद्यार्थियों सहित सभी राष्ट्र-चिंतकों व साहित्य-रसिकों के लिए प्रेरक व संग्रहणीय हो सकता है। शेष के लिए पठनीय व स्मरणीय भी। जय हिंद, वंदे मातरम।।
★संपादक★
न्यूज़ & व्यूज़
श्योपुर (मध्यप्रदेश)