गैर
तूने गैर बसाकर आँखों में
ज़हर घोल दी मेरी सांसों में
अब कैसे जीऊंगा मैं तन्हा तन्हा रातों में
फूलों की तमन्ना में उलझ गया हूँ काँटों में
अब कैसे जीऊंगा मैं तन्हा तन्हा रातों में
काश मैं तुझ पे ऐतबार न करता
हद से ज्यादा प्यार न करता
क्यों आया दिल तेरी बातों में
अब कैसे जीऊंगा मैं तन्हा तन्हा रातों में
कमी क्या थी मेरे प्यार में दिलबर
जो जख्म दिया तूने मेरे दिल पर
सर से पांव तक भीग गया हूँ मैं
गम की इस बरसातों में
अब कैसे जिऊंगा मैं तन्हा तन्हा रातों में.