गैरों से संपर्क
जब से तुम्हारा, गैरों से सम्पर्क हो गया है
तब से ही हमारे ‘रिश्ते में फ़र्क हो गया है
तेरे अंदाज़ से तो लगता है तुम मज़े में हो
पर मेरा तो ये पूरा’ जीवन नर्क हो गया है
इतना गहरा संबंध भला कैसे तोड़ दिया है
ये कभी ना सुलझने वाला, तर्क हो गया है
बड़ा भरोसा था वो कभी नहीं डगमगाएगा
आज बीच सफ़र में ये बेड़ा गर्क हो गया है
आजाद भोलेपन में, बहुत बरबाद हुआ है
लाखों ठोकरें खाके बड़ा सतर्क हो गया है
– कवि आजाद मंडौरी