गैरतमंद कहाँ हमे मिले
गैरतमंद कहाँ हमें मिले
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व्यवधान पैदा हैं करते
समाधान कहाँ से मिले
काँटो में रहते हम सदा
बातें काँटों की हम करें
बागों से फूल तोड़ते
हार फूलों के कहाँ मिले
नेकी कर दरिया फैंकते
नेक जन कहाँ हमे मिले
नफरतों को रहें पालते
प्रेम भीख कहाँ से मिले
स्वार्थ का घूँट पी लिया
निस्वार्थता कहाँ मिले
बेगैरतों के बीज बोते
गैरतमंद कहाँ हमें मिले
ईमान तो रहें है बिकते
ईमानदार कहाँ से मिल
मानवीय मूल्य नहीं रहे
मानवता कहाँ हमें मिले
झूठ सदा से ही बोलते
सच्चाई कहाँ से मिलै
जहर जाति धर्म घोलते
धर्मनिरपेक्ष कहाँ मिले
बेईमानी तो रग रग मे
इंसान में ईमान ना मिलै
सुखविंद्र तो अपराधी है
निर्दोष यहाँ पर ना मिले
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)