गेहूं गाहने का अनुभव
आज गांव में फिर वो
खलियान मुझे दिखा
जहां बचपन में खेलते थे
हम भाई बहनों के साथ।।
मेरी आंखों के सामने बचपन का
वो दृश्य सामने दिख रहा था
खलियान में क्या क्या करते थे
हम सब मिलकर याद आ रहा था।।
सुबह ही गेहूं के पुले काटकर
खलियान में फैला दिए जाते थे
सूख जाए जब दोपहर को बैलों के साथ
हम बच्चे भी खलियान में उतार दिए जाते थे।।
हम बच्चों के लिए थी मस्ती वो
लेकिन बैलों के लिए काम था
गेहूं गाहते वक्त मेढ़ी जो बनता था
मेरे उस बैल का नाम माल्टू था।।
हमारे साथ बछड़े भी गेहूं
गाहने का अनुभव लेते थे
जब मौका लगता था उनको
थोड़े गेहूं की सूखे तिनके खा जाते थे।।
जब मेरी मां डंडा लेकर
बैलों को हांकती थी
धीरे धीरे सूखे गेहूं का
भूसा वो बना देती थी।।
बैलों को देकर विश्राम फिर
परिवार के सब लोग, डंडों से
पीट पीट कर बचे हुए
सूखे गेहूं की फलियों से
गेहूं के दाने अलग करते थे।।
जब काफी देर हो जाती तो
बीच बीच में भूसा अलग करते थे
जब खलिहान में सिर्फ थोड़ा
भूसा और गेहूं के दाने रह जाते थे।।
हमारा और बैलों का काम
फिर समाप्त हो जाता था
हवा के इंतज़ार में ही अब
आगे का काम रुक जाता था।।
शाम को आने वाली हवा का रुख
उसे खडौली की तरफ होता था
जिसमें हम सारा भूसा रखते थे
जैसे ही हवा चलती नीचे ओड़ी रखते
और भूसे के साथ मिले गेहूं के दानों को
शूप में लेकर ऊंचाई से ओड़ी में फेंकते
जिससे गेहूं के दाने ओड़ी में गिरते थे
और भूसा सीधे खडौली में गिरता था।।
जो काम आसान लगता है आज,
कल वो मुश्किल से होता था
किसान खुद उठाकर कंधों पर
खेतों से सारा गेहूं लाता था।।
कभी कभी बचपन की यादें
अचानक आंखों के सामने आती है
और हमें फिर से बचपन के
उन सुहाने दिनों में लेकर जाती है।।
शब्दार्थ
गाहना – गेहूं के दानों को अलग करने की प्रक्रिया
खडौली – खलियान के साथ घास एवम भूसे का भंडारण करने के लिए पत्थरों एवम मिट्टी से बना कमरा
ओड़ी – भंडारण के लिए टिन का बड़ा बर्तन