गृहस्थ जीवन
वो नदिया के दो किनारों से ।
बीच सँग बहती धारों से ।
छूते लहरें धाराओं की ,
कुछ खट्टे मीठे वादों से ।
प्रणय मिलन की यादों सँग,
घटती बढ़तीं धाराओं से ।
सप्तपदी जीवन नदियाँ में,
टकराते मिश्रित धाराओं से ।
सहज रहे हैं समेट रहे हैं ,
अपनी स्नेहिल बाहों से ।
भींग रहे हैं पल हर पल ,
लिपटे चिपटे आभासों से ।
वो नदिया के दो किनारों से।
….. विवेक दुबे”निश्चल”@…