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21 Oct 2020 · 1 min read

गृहलक्ष्मी

माता पिता परिवार
छोड़ आई है,
मेरी पत्नी गृहलक्ष्मी सी
मेरा सौभाग्य लाई है।
सबसे पहले जगती
सबके बाद में सोती है
इक पल चैन न पाती
फिर भी रहे मुस्कराती है।
अपनी पीड़ा छिपाती
परिवार की खुशियां सजाती,
सास,ससुर,देवर,जेठ
ननद,बच्चों में उलझी
सबकी खुशियों का
प्रबंध करती।
माँ बाप,भाई बहन को याद
चुपके से रो लेती,
अपनी खुशियों को
ताक पर रखे रहती,
अपना तो जैसे होश नहीं
हाँ प्यार के दो शब्द सुन
बलियारी जाती।
कहने को तो मेरी पत्नी है मगर
परिवार की परछाईं बन
सबकी चहेती बनी,
बिस्तर पर आने तक
थककर चूर हो जाती,
बिस्तर पर आते ही
मेरी बाँहो में सिमट
जैसे अनंत आकाश पाती
निश्चिंत हो सो जाती
मुझे गर्व का अहसास कराती,
अपनी शीतल छाया से
जीवन में खुशियां बिखेरती,
अपने सौभाग्य पर मुझे
मुस्कराने को विवश करती,
मेरी घर की गृहलक्ष्मी
मेरा सौभाग्य जगाती।
● सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
1 Like · 265 Views
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