गूॅंज
जो गौर किया तब यही पाया, ये प्रकृति निष्पक्ष व्यवहार करती है।
नीति-रीति या प्रीति-प्रतीति, ये सभी प्रकृति की हुंकार से डरती हैं।
कर्म, धर्म और मर्म सबको, निश्चित क्रमानुसार ही सुनवाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
आकर्षण हो या फिर विकर्षण, स्मृतियों के दर्पण में इंतज़ार देखो।
ग्रीष्म की चुभन, शरद की ठिठुरन व बसंत की अमिट बहार देखो।
हमें रिमझिम फुहारों के बाद ही, एक सतरंगी छटा दिखाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
सोच से विकास-विनाश सब संभव, हाथ तो केवल साधन होते हैं।
बात करने से ही बात बन जाए, बैठक-चर्चा तो बस वाहन होते हैं।
संवाद करने की कुशलता ही, हमारे बंद विचारों को रिहाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
न ओर-छोर, न ही गौर-दौर, हमारी पृथ्वी तो हर जगह से गोल है।
सौहार्द जिसके कोने में दिखे, समझ लो तुम वो हृदय अनमोल है।
ऐसे व्यवहार की वृहद पुनरावृति, वैश्विक रिश्ते को गहराई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
स्वदेश में बसो या परदेश चले जाओ, चाहे सात समंदर पार करो।
तरीका व सलीका सही रखो, जन का परिजन जैसा सत्कार करो।
मानवीय मूल्यों की यही वृद्धि, सत्कर्म व सद्भाव को बढ़ाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
कुछ देशों में आज निरंतर, अधर्म, अन्याय व अत्याचार हो रहा है।
सुख-शांति से बसी दुनिया में, प्राणी रोगी-भोगी बनकर रो रहा है।
युद्ध, दंगे, हिंसा, झड़प के ऊपर, स्वयं धरती माँ भी दुहाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
एक है भूमि पर असंख्य हैं देश, एक है काया पर असंख्य हैं भेष।
जब एक भूमि व एक भाव रहें, उस दिन हो स्वर्णिम युग में प्रवेश।
सोच सही हो तो स्वयं नियति, जन-जन के श्रम को बधाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।
आज कुटुंब की भांति पूरा संसार, एक छत्र के नीचे आने लगा है।
वो मानवता में छिपा धर्म-मर्म, अब पूरे विश्व को समझाने लगा है।
सच्चे दिल से दी गई हर दुआ, जीवन को नवीनतम ऊॅंचाई देती है।
जो दिल की खिड़की खुले, तो विविध देशों की गूॅंज सुनाई देती है।