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15 Jun 2023 · 1 min read

गुस्सा

गुस्सा
हां देखो! मैने अभी अभी गुस्से को यूं आते देखा है
“नाक “पे ज़रा अपनी “नाक” को यूं चढ़ाते देखा है
है जो तैश में ताव, वो उबाल यहां लाते देखा है
अभी अभी मैने उस को हुजुर! आग उगलते देखा है..
था कहीं छुप्पा गुस्से का गुबार!वो बाहर निकालते देखा है
तपाक सी उन आंखों को हर बार यूहीं ऐठंन चढ़ाते देखा है
जोश मे मगरूर वो खामोशी में तेरा, वो होश उड़ाते देखा है
जो जज्बातों को छलनी कर अभी अभी अपने आप को खोते देखा है….
कैसे न कहूं जो दिखता रहा खुशमिजाज! वो अंत:में भी उबला है
भरा था रोष कितना अंत:में उसके! वो आज उसके आंखों में झलका है
यकीन मुझे भी नहीं वो ऐसा! मगर देख अब तेवर लगने लगा है
कितना द्वेष भरा है सब अपनों को काटने कि हस्ती उसमें!वो भाव मढ़ते देखा है…
अब कैसे यक़ीन करूं क्षणिक है रोष उसका जो बदल जायेगा
लिए मन में भाव जो द्वेष का अमिट हस्ती! आखिर छट जायेगा
लगता नहीं ये मुहाना जो दो किनारे का, आखिर! में कहीं एक हो जायेगा
अथक किया था मैने भी प्रयास! एक शांत हो, मगर अफसोस सब अपने में टूट जायेगा….
आपके बोलते शब्दों का मिज़ाज हमने पढा है
कितना जुड़े हो हमसे आज सब पता है
हमारी अहमियत की कितनी है कदर आज सब देखा है
बस खुद की हस्ती में तुम्हें देखा आज! सो जोडा है…
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी

4 Likes · 2 Comments · 290 Views
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