गुलाम
शिक्षित किशोर ,
तुम मूर्ख क्यों बन रहे हो ?
ठेकेदारों की बोली के माध्यम,
तुम क्यों बन रहे हो ?
अपनी बुद्धि के मुन्ना खोलो,
तुम किसी और का बड़ी लंग्वेज क्यों बन रहे हो ?
थे ही पुरखा गुलाम,
तुम वैसे ही क्यों बन रहे हो ?
हर जगह शिल्पकार समुदाय,
तुम दूसरे का प्रतीक क्यों बन रहे हैं ?
लोकतंत्र तुम्हारे लिए आया ही नहीं,
तुम फिर भी युज बैटरी क्यों बन रहे हो ?
शासक द्वारा बनाई गई मिट्टी की मूर्तियाँ,
तुम २१वीं सदी में भी क्यों बन रहे हो ?
‘हट केक हमेशा रहा मधेश,
तुम शोषक के भूलभूलैया के प्रतीक क्यों बन रहे हो ?
तुम्हारा ही जल, जंगल, जमीन पर दूसरों का कब्जा है,
तुम दूसरों के लिए गेंद क्यों बन रहे हैं ?
नव पीढि के दादा बनने का इतिहास,
तुम अधुरा क्यो छोड रहे हो ?
तुमरा खूद का आन, वान , शान और पहचान है,
तुम फिर भी दूसरों का स्तुतिकर्ता क्यों बन रहे हो ?
स्वयं शिक्षित होकर भी,
तुम गुलाम क्यों बन रहे हो ?
#दिनेश_यादव
काठमाडौं (नेपाल)