गुलाबों की तरह खिलना कहाँ आसान होता है
गुलाबों की तरह खिलना कहाँ आसान होता है
गले काँटों से मिल हँसना कहाँ आसान होता है
मिटा देते हैं ये खुद को लुटाने के लिए खुश्बू
ख़ुशी यूँ बाँट कर मिटना कहाँ आसान होता है
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल
गुलाबों की तरह खिलना कहाँ आसान होता है
गले काँटों से मिल हँसना कहाँ आसान होता है
मिटा देते हैं ये खुद को लुटाने के लिए खुश्बू
ख़ुशी यूँ बाँट कर मिटना कहाँ आसान होता है
लोधी डॉ. आशा ‘अदिति’
बैतूल