गुरु
गर माँ-बाप ने उँगली पकड़ कर चलाया है।
तो गुरु ने हमें मंज़िल का रास्ता दिखाया है।
हमारी दुनिया थी तारीकी के समंदर में डूबी।
गुरु ने इस दुनिया को रौशन कर दिखाया है।
जब जब गिर पड़ा कभी भी किसी मोड़ पे।
हमें उठा कर उन्हों ने ही चलना सिखाया है।
हम ने तो जलील किये उल्टे सीधे हरकतों से।
पर बड़े सब्र दिखा कर उन्हों ने हमें पढ़ाया है
कभी माँ-बाप,कभी भाई-बहन तो कभी दोस्त।
हर रिश्ते में गुरु ने बख़ूबी ख़ुद को समाया है।
जब कभी भी हालात ने है क़हर ढाये हम पे।
मसीहा बन कर गुरु ने अक्सर हमें बचाया है।
ठोकरें खा खा कर ज़ख़्में जब भी है लिये हम ने।
हमारे हर ज़ख़्म पे मरहम उन्हों ने ही लगाया है।
पूरी ज़िंदगी गुरु ने बिता दी दूसरों को सिखाते हुये।
पर आज के नस्लों से इज़्ज़त कहाँ कमा पाया है ?