गुरु वंदना
गुरु महिमा
है मुखमंडल पे आभा की छाया, सूरज सा तेज समाया है,
गुरु ज्ञान की दिव्य ज्योति को, जब दिव्य रूप मे पाया है,
ज्ञान तुम्ही सम्मान तुम्ही,तुम्ही समाज की परिभाषा हो,
अंधेरे मे भटकी मंज़िल की, तुम दीपक रूपी आशा हो ,
परमात्मा परमानंद तुम्ही हो ,परमेश्वर का ज्ञान तुम्ही हो,
कभी डांटकर कभी प्रेम जताकर, तुमने जीवन दान दिया,
सत्य, न्याय, और करुणा के, आत्म रस मे बिभोर किया,
गलत सही की राह बता कर ,एक प्रेरणा का स्त्रोत दिया,
गुरु रूप मे आकर जीवन मे, मेरा जीवन साकार किया,
हे जगवंदन तुमको अभिनंदन,अर्पण तुमको क्या भेंट करूँ,
हाथ जोड़कर प्रेम ह्रदय भर, मैं तेरा सच्चा गुणगान करूँ,
तुम्हारे चरण कमल की चरण रज़ को, मस्तक पर स्वीकार करूँ,
मस्तक पर स्वीकार करूँ , मस्तक पर स्वीकार करूँ !!!
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