गुरुवर
गीत
स्नेह सुधा से सिंचित करके, जीवन सरस बनाते हैं
तेजवान गुरुवर पर हमसब, निसदिन बलि-बलि जाते हैं
अनवरुद्ध तम भेद मिटाकर, नव्य ज्ञान सिखलाते हैं
दुर्धर औ दुर्जेय राह गुरु, अविरल सुगम बनाते हैं।।
मन विदग्ध आहत जब होता, अपनापन दिखलाते हैं
घोर अनृत मिथ्या कारा से, विमुक्ति पाठ पढ़ाते हैं।
विपुल विभव जीवन में आये, दुरित दैन्य हर लेते हैं
गुरुवर विजन-विकार-विकलता, दूर सदा कर देते हैं।।
अभ्युदय का उत्स बहाकर, सौरभ सुख सरसाते हैं
रजतमयी गुरु ज्ञान पुंज से, जगमग जग कर जाते हैं
श्रम-प्रसूति से समासीन हो, गुरु सर्वस्व लुटाते हैं
ज्ञानागार देव सम गुरु को, नित-नित शीश झुकाते हैं।।
डॉ छोटेलाल सिंह’मनमीत’