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7 Jul 2019 · 1 min read

गुनहगार

जब सोचा था हमने दिलसे तो गुनहगार थे बहुत ।
देखा तो जिन्दगी मे फूल कम और खार थे बहुत ।

गुनाह बख्शाने के लिए सोचे भी तो कैसे,
लगे कतार मे हम से खतावार थे बहुत ।

हमारे ही हिस्से मे बहार न कभी आई,
यू जिन्दगी मे मौसम खुशगवार थे बहुत ।

हम ही अपनी प्यास कभी न बुझा सके,
वैसे राह मे हमारी भी यू आबशार थे बहुत ।

Surinder kaur

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