गुनहगार
जब सोचा था हमने दिलसे तो गुनहगार थे बहुत ।
देखा तो जिन्दगी मे फूल कम और खार थे बहुत ।
गुनाह बख्शाने के लिए सोचे भी तो कैसे,
लगे कतार मे हम से खतावार थे बहुत ।
हमारे ही हिस्से मे बहार न कभी आई,
यू जिन्दगी मे मौसम खुशगवार थे बहुत ।
हम ही अपनी प्यास कभी न बुझा सके,
वैसे राह मे हमारी भी यू आबशार थे बहुत ।
Surinder kaur