गुज़रा ज़माना
विद्यालय की यादें…….
सौंधी मिट्टी की भीनी भीनी खुशबू सी हैं
मेरे स्कूल की यादें।
प्यारी चिट्ठी सी सहेजी हैं
मैंने मेरे स्कूल की यादें।
मन के उपवन में रंगीं सुरभित
फूलों सी हैं मेरे स्कूल की यादें।
सावन की फुहार में बढ़ती पींघ के
ऊंचे झूलों सी हैं मेरे स्कूल की यादें।
स्कूली जीवन भी क्या जीवन था
वह अद्भुत मधुर संजीवन था।
वो समूह में सहपाठियों संग,
स्कूल में एक साथ जाना।
वो मुंह में,मां के दिए,भीगे बादाम छिपकर चबाना।
वो मुंह फुलाकर एक दूसरे से रूठना और मनाना।
वो बात बात में अजीबो गरीब शर्तें लगाना।
वो नवीन सत्र में कापियों पर खाकी जिल्द चढ़ाना।
वो अपने नाम अनुक्रमांक से सजी सफेद पर्ची चिपकाना
वो विषय सूची और सुधार कार्य को भी कलात्मक बनाना।
मिले जो उत्कृष्ट- सर्वश्रेष्ठ तो दोस्तों पर छा जाना।
वो मानिटर बनने पर,सबपे रोब जमाना और
लिखावट पर अपनी खामखां इतराना।
सबसे सुंदर मैं ही लिखती हूं कह भाई बहनों को चिढ़ाना।
कर खुद शरारत सहपाठी को डांट पड़वाना,आह!
बन गया स्कूली जीवन मेरा गुज़रा ज़माना।
हाय! वो गर्मी की छुट्टियों में घर नानी के जाना,
और मामियों का झोली भर अनाज देकर,
बासू की दुकान पे खंदाना।
उफ्फ मेरी नानी का मुझे बार-बार वो गंजा कराना।
डांटकर कि फिर से बंद हो गए नाक कान के छिद्र,
वो जबरदस्ती से छिदवाकर फिर तेल हल्दी लगाना।
वो स्कूल जाते हमें देख, मां का हाथ हिलाना, वो डर के
पापा जी से, मुल्तानी चाक से सफेद जूते चमकाना।
वो प्रार्थना सभा में पी.टी. सर का हमें पीटी कराना।
न जाने क्यों छूटा पीछे खो-खो और पिट्ठू गरम का फसाना, वो हाई जंप और योगा से बार बार कतराना।
वो हंसना साथ दोस्तों के,रोना और बिना बात खिलखिलाना।
वो शरारत और पढ़ाई सबकुछ साथ में करना।
वो दादी नानी का राजा रानी की कहानी सुनाना।
वो दादा नाना का सबसे लाडला कहाना।
वो घंटी बजते ही एक दूसरे का सारा लंच खाजाना।
वो अचार इमली चूर्ण चुस्की गुड़गट्टे का ज़माना।
वो दो चोटियां कर रिबिन लगाने से कतराना।
है हुई जाती निशब्द अब नीलम तेरी कलम
नहीं मुमकिन सब कविता में बताना, क्योंकि
अपने आप को अपने बच्चों का अच्छा आदर्श है बनाना।
खिल उठता है ये मन याद करके वो ज़माना।
नीलम शर्मा