गुज़रता है वक़्त
गुज़रता है वक़्त, यूं ही गुज़र जाएगा
गर तू मेरा नहीं तो कोई दुसरा हो जाएगा
डूबती तेरी कश्ती को उछाला हूं मैं
जो ना रहा… तो तू साहिल से उतर जाएगा
दिल की ख़ामोशी से सांसों के ठहर जाने तक
तुझे याद आएगा वो गुजरा पल बीत जाने पर
हारकर उससे जो लुत्फ़ आया था कभी
वो मज़ा तुझे जीत के बाद ना मिलेगा कभी
ना हो इतना मायुस तू तन्हा ये जिंदगी से
रोशन सवेरा तेरा भी इक रोज़ आएगा जरुर
तारीफों के लिबास में इलज़ाम लगाए जाएंगे
नकाब ओढ़े फरेबी चेहरे हर जगह मिल जाएंगे
उठती उँगलियां मशहूर तुझे कर जाएगी
होगा ये एहसान तोहमत लगाने वालों का तुझपर
गर रुखसत ना किया जो खल्वत-ए-गम को तू
तो जालिम तेरा ये दुख तुझे ही मार डालेगा।
– सुमन मीना (अदिति)