गुजरा ज़माना
गांव फिर से बसाने होंगे
पेड़ मिट्टी में लगाने होंगे
कोने में पड़े मूसल और सिलबट्टे
वापस आंगन में सजाने होंगे
मां जिन लड्डू और हलवा को
हमें डांट कर खिलाती थी
वही लड्डू और हलवा
हमें अपने बच्चों के लिए
बनाने होंगे।
उठो लाल अब आंखें खोलो
लोरी चंदा मामा की
फिर से बच्चों को सुनाने होंगे
पकड़म– पकड़ाई और छुपन– छुपाई
कभी ईक्कल– दुक्कल कभी रस्सी कुदाई
ये खेल सबको सिखाने होंगे
वह वक्त जब जगह कम
और लोग ज्यादा हुआ करते थे
फिर किस्से कहानी और बातें पुरानी
सुनकर एक ही खटिया पर सोया करते थे
त्याग कर बेड, वह खटिया वापस बिछानी होगी
वह जमाने लाई चने वाले
फिर से लाने होंगे।