गीत
अव करो समाहित मुझको ।
तुम अपने में मिल जाने दो।
भटक रही इस सरिता को ।
गहरा सागर बन जाने दो।
घोर ताप से जलती वगिया ।
‘फूल पात सब मुरझायें है ।
तुम बसन्त बन आ जाओ।
मन मंदिर’ में कब से सोई।
कलियों को खिल जाने दो।।
दंभ भरे पाषाण हदय पर ।
अब प्रेम सुधा बरसाओ।
दग्ध हृदय पर छा जाओ।
लो बांध मुझे बाहुपाश में
अब मुझे धन्य हो जाने दो।।
नव कोपल फूटेगी अब तो।
सूख चुकी इन शाखाओं में।
जीवन दायिनी प्रेम शक्ति दे।
हृदय प्रसून खिल जाने दो।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव “पूनम “