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10 Jun 2023 · 1 min read

गीत

सोच रही जब आओ मिलने, बैठो पास, निहारो मुझको।
जैसा निर्देशन दें आँखें, वैसे ही तुम चाहो मुझको।

आँख आँख में उलझीं हों जब, तब सब कुछ आँखों से बोलो
जब मुखरित हो नेह हमारा, तुम भी अधर सहज हो खोलो।
बोलो कितनी निमर्म हूँ मैं, बोलो कितना सादे हो तुम।
बोलो जीवन कैसा नीरस, बोलो मुझ बिन आधे हो तुम।

कभी करो तारीफ, कभी तुम मेरे दोष गिनाओ मुझको।

सोच रही हूँ मुलाकात की अवधि भला क्यों कम होती है ?
कम होती है सच में, या फिर हमको ही कुछ कम लगती है।
सोच रहीं हूँ, मुलाकात सा जीवन होता, तो क्या होता ?
सब कुछ नेह परिधि के भीतर बँधकर होता तो क्या होता?

मन के कल्पित दिव्य नगर में बसकर स्वयं बसा लो मुझको।
-Shiva awasthi

2 Likes · 1 Comment · 259 Views
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