गीत सुनाता हूं मरघट के सुन पाओगे।
गीत सुनाता हूं मरघट के,बतलाओ क्या सुन पाओगे।
जलती हुईं चिता के लपटों के उदास नर्तन को लखकर,
जीवन के निस्सार सार की कुछ कड़वी बूंदों को चखकर,
लौट इसी जग में क्यों आते भेद ये कैसे समझाओगे।
गीत सुनाता हूं ………….।
त्वरित गति से निपटाते सब संगी साथी प्यारे सारे,
एक पहर भी रुक न पाते अति व्यस्त मानव बेचारे,
अग्निदेव की शुद्ध गोद में घोर अकेले रह जाओगे।
गीत सुनाता हूं ………….।
कुछ तो हंसी ठिठोली करते कोई कोन किनारा धरकर,
कुछ ये कहते यही नियति है राख हमें भी होना जलकर,
श्मशानी वैराग्य छणिक है साथ न इसके रह पाओगे।
गीत सुनाता हूं …………।
Kumar kalhans