गीत लिखूँ क्या?
भाव अभी अज्ञातवास पर गीत लिखूँ क्या,
दोस्त ही खंजर भोंकने तत्पर गीत लिखूँ क्या?
०००
आज वही निज साथ छोड़कर ऱूठ गये,
जिनका साथ दिया पग-पग पर गीत लिखूँ क्या?
०००
नाते ज़िन्दा रहते हैं संवाद से ही,
बैठे पर वह भुकड़-भुकड़ कर गीत लिखूँ क्या?
०००
स्वार्थ साधते रहे सदा जो औरों से,
लगा रहे आरोप वो हम पर गीत लिखूँ क्या?
०००
‘सरस’ ज़रूरी पीड़ायें लेखन के हित,
कभी न कह पीड़ायें पाकर गीत लिखूँ क्या?
*सतीश तिवारी ‘सरस’