गीत- बहुत भोली बड़ी कमसिन…
बहुत भोली बड़ी कमसिन सुनो तुम चाय प्याली हो।
लिए हो सुब्ह सूरज की लबों पर लाल लाली हो।।
अदाएँ माह मधुबन-सी शरद-सा नूर यौवन है।
खुली ज़ुल्फ़ें लगें बादल तेरा मन-शौक़ सावन है।
तेरी यै चाल तरुवर की लचक भरती-सी डाली है।
लिए हो सुब्ह सूरज की लबों पर लाल लाली हो।।
निग़ाहें तो तेरी जानाँ लगें अंगूर की हाला।
गुलाबी गाल गुलाबों की बनी जैसे कोई माला।
मधुर हर बात तेरी है मुझे भाए रसीली हो।
लिए हो सुब्ह सूरज की लबों पर लाल लाली हो।।
अदब कोमल बदन रेशम हृदय मखमल तुम्हारा है।
तुम्हारी चाह का हर हाल मेरे दिल को गँवारा है।
मुझे जो हौंसला दे तुम मेरी ख़ातिर वो ताली हो।
लिए हो सुब्ह सूरज की लबों पर लाल लाली हो।।
आर.एस. ‘प्रीतम’