* गीत प्यारा गुनगुनायें *
** नवगीत **
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प्रकृति के साथ हिलमिल,
गीत प्यारा गुनगुनायें।
भोर की बेला सुनहरी,
प्राणियों ने चक्षु खोले।
मिट गई तम श्रृंखलायेँ,
और लब पर सुर अबोले।
पाखियों के झुंड मिलकर चहचहायें।
प्रकृति के साथ हिलमिल,
गीत प्यारा गुनगुनायें।
ओस की बूँदे टपकती,
मखमली सी घास पर।
और चूल्हों का धुआँ,
उठ रहा आकाश पर।
खिल उठी हैं
सुप्त मन की भावनायें।
प्रकृति के साथ हिलमिल,
गीत प्यारा गुनगुनायें।
चल पड़ी है जिन्दगी,
स्वयं अपनी राह पर।
छल कपट से दूर अब तक,
प्रीत अपनी चाह पर।
स्नेह की अविराम निर्मल भावनायें।
प्रकृति के साथ हिलमिल,
गीत प्यारा गुनगुनायें।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य