गीत गाया पत्थरों ने
गीत गाया पत्थरों ने
मैं जब चला यहाँ से
मिला धोखा ही धोखा जहां से
मगर जब पहुंचा उपवन में
न था वहां पर कोई दुख संताप
चारों तरफ थे झाड़ झंखाड़
और थी चारों तरफ हरियाली
बैठ एक छोटे पत्थर पर
गुनगुनाने लगा कुछ यूँ ही मैं
मिलाया सुर सुरीली हवा से
झूम उठी सारी हरियाली
और मेरे साथ मिलकर
गीत गाया पत्थरों ने
गीत गाया पत्थरों ने ।
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नवल पाल प्रभाकर